व्यापारNCLT के फैसले को मिली मंजूरी, सुपरटेक रियल्टर्स के खिलाफ दिवाला प्रक्रिया साफ

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NCLT के फैसले को मिली मंजूरी, सुपरटेक रियल्टर्स के खिलाफ दिवाला प्रक्रिया साफ

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Peptech Time, Chhatarpur
14 अगस्त 2025, 10:54 am IST
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व्यापार : राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) ने सुपरटेक रियल्टर्स के खिलाफ दिवाला कार्यवाही का रास्ता साफ किया। सुपरटेक कंपनी नोएडा स्थित सुपरनोवा प्रोजेक्ट की डेवलपर है, जिसमें आवासीय अपार्टमेंट, ऑफिस, रिटेल स्पेस और एक लग्जरी होटल शामिल हैं। पिछले आदेश को रखा आदेश एनसीएलटी की दिल्ली पीठ ने अपने पिछले आदेश को बरकरार रखा है। इसमें 12 जून 2024 को बैंक ऑफ महाराष्ट्र की याचिका पर कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (सीआईआरपी) शुरू करने का निर्देश दिया गया था। बैंक ने कंपनी पर डिफॉल्ट का आरोप लगाते हुए यह याचिका दायर की थी। दो सदस्यीय एनसीएलटी पीठ ने कहा कि कंपनी के प्रमोटर राम किशोर अरोड़ा द्वारा पेश किया गया संशोधित निपटान प्रस्ताव बैंकों के कंसोर्टियम ने स्वीकार नहीं किया है। दो सदस्यीय NCLAT पीठ ने कहा कि कंपनी के प्रमोटर राम किशोर अरोड़ा का संशोधित निपटान (OTS) प्रस्ताव बैंकों के समूह ने स्वीकार नहीं किया। ट्रिब्यूनल ने अंतरिम रेजॉल्यूशन प्रोफेशनल को क्रेडिटर्स की कमिटी (CoC) बनाने और CIRP आगे बढ़ाने की अनुमति भी दे दी। कंसोर्टियम बैंकों का 990 करोड़ रुपये से अधिक बकाया अरोड़ा ने पहले 75% भुगतान का प्रस्ताव रखा था और बाद में परमेश कंस्ट्रक्शन कंपनी को को-डेवलपर बनाकर संशोधित OTS पेश किया था, लेकिन बैंकों के समूह ने इसे भी खारिज कर दिया। बैंक ऑफ महाराष्ट्र ने बताया कि सभी कंसोर्टियम बैंकों का बकाया 990 करोड़ रुपये से अधिक है और 13 जून 2025 को हुई संयुक्त बैठक में OTS प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया गया। कंपनी कर्ज चुकाने में विफल रही सुपरटेक रियल्टर्स ने इस प्रोजेक्ट के लिए यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के नेतृत्व वाले बैंकों के समूह से कुल 735.58 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता मांगी थी, जिसमें से 150 करोड़ रुपये का टर्म लोन दिसंबर 2012 में बैंक ऑफ महाराष्ट्र ने मंजूर किया था। यह लोन मार्च 2023 तक चुकाया जाना था, लेकिन कंपनी भुगतान अनुशासन बनाए रखने में विफल रही और भारी बकाया जमा हो गया। NCLAT ने स्पष्ट किया कि बैंकों द्वारा OTS खारिज करने के कारणों की समीक्षा इन कार्यवाहियों में नहीं की जा सकती और अब कंपनी के खिलाफ दिवाला प्रक्रिया कानून के तहत पूरी होगी।

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