बालाघाट में हुआ नक्सलियों का ऐतिहासिक सरेंडर, 62 लाख के इनामी नक्सली कबीर सहित 10 ने डाले हथियार

आत्मसमर्पण करने के बाद नक्सलियों के साथ सीएम मोहन यादव
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बालाघाट। मध्यप्रदेश के नक्सल इतिहास में पहली बार इतनी बड़ी संख्या में हार्डकोर नक्सलियों ने मुख्यधारा में लौटने का फैसला किया। रविवार को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की मौजूदगी में 62 लाख रुपये के इनामी सुरेंद्र उर्फ कबीर समेत 10 नक्सलियों ने हथियार डालकर आत्मसमर्पण कर दिया। इन सभी पर मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में कुल 2 करोड़ 36 लाख रुपये का इनाम था।
चार महिला और छह पुरुष नक्सलियों ने पुलिस को दो AK-47, दो इंसास रायफल, एक एसएलआर, दो एसएसआर, सात बीजीएल सेल और चार वॉकी-टॉकी सौंपे। यह सरेंडर लांजी के माहिरखुदरा इलाके में छत्तीसगढ़ सीमा के पास शनिवार देर रात हुई मुठभेड़ के बाद हुआ।
मुख्यमंत्री ने कहा – “बालाघाट जोन में इस साल अब तक 10 हार्डकोर नक्सली मारे जा चुके हैं। जो बचे हैं, वे भी समझ गए हैं कि बंदूक का रास्ता अब बंद हो चुका है। हमारा दरवाजा खुला है, लेकिन हथियार उठाने की इजाजत किसी को नहीं मिलेगी।” उन्होंने साफ किया कि सरेंडर करने वालों का पूरा पुनर्वास होगा। नौकरी, घर, सुरक्षा और सम्मानजनक जिंदगी दी जाएगी ताकि वे समाज की मुख्यधारा में शामिल हो सकें।
ग्रामीणों और वनकर्मी ने निभाई अहम भूमिका
वनकर्मी गुलाब उईके ने बताया कि नक्सलियों ने खुद संपर्क किया। ग्रामीणों का साथ न मिलने और जंगल में सुरक्षाबलों के लगातार दबाव से वे परेशान थे। गुलाब उईके और स्थानीय लोगों ने बीच में बातचीत कराई। वाहन का इंतजाम किया और उन्हें सुरक्षित बालाघाट लाया गया। पुलिस सूत्रों के मुताबिक मार्च 2026 तक नक्सल मुक्त भारत का लक्ष्य और जंगलों में बढ़ते कैंपों ने इनके हौसले तोड़ दिए। मुठभेड़ में साथी मारे जा रहे थे, रसद नहीं पहुंच रही थी, ग्रामीण अब मुखबिरी करने लगे थे। आखिरकार कबीर ने सरेंडर का फैसला लिया और बाकी साथी भी मान गए।
मुख्यमंत्री ने सभी 10 नक्सलियों को मंच पर बुलाया, गले लगाया और कहा – “आज तुमने सही रास्ता चुना। अब तुम हमारे परिवार का हिस्सा हो।” जवानों ने भी तालियां बजाकर उनका स्वागत किया। यह सरेंडर मध्यप्रदेश की नक्सल आत्मसमर्पण नीति की बड़ी जीत है। बालाघाट, मंडला और डिंडोरी में अब नक्सलियों की संख्या बेहद कम रह गई है। सरकार का दावा है कि आने वाले महीनों में और बड़े सरेंडर होंगे। बुंदेलखंड से लेकर बघेलखंड तक नक्सलवाद अब इतिहास बनने की कगार पर है।
